सन् ८० का दशक,बुन्देलखण्ड का चम्बल इलाका जो डकैतों के लिए भी मशहूर है , जितने भी लोगों के घर में रेडियो मौजूद हैं तो वें मध्यप्रदेश के बुदेलखंड जिले के छतरपुर जिले की आकाशवाणी से प्रसारित मशहूर लोकगीत गायक देशराज पटैरिया के गीत सुनकर खुश हो जाते हैं, चम्बल के आस पास गाँवों में डाकुओं की बड़ी दहशत रहती है,लोंग शाम से ही अपने घर के दरवाजों के पीछे छिप जाते हैं फिर कोई भी आएं सुबह ही दरवाजा खुलता है घर का,लोंग घर में जमा नगदी जमीन में गड्ढा खोदकर छुपा देते हैं और जेवरातों की पोटलियों बक्सों में डालकर खेतों में दबा आते हैं,चम्बल की घाटी, चम्बल की और भी नदियों के इर्द गिर्द भी है, इसमें यूपी और एमपी के कई ज़िले आते हैं, वहाँ के तकरीबन सभी इलाकें रात को डाकुओं के डर से खामोश रहते हैं, डाकुओं का खैाफ इलाके के लोगों पर सिर चढ़कर बोलता है,
एक बड़ी अजीब सी चीज़ जो इन इलाकों में देखने को मिलती है कि जिन्हें पुलिस डाकू, डकैत, दस्यू और अपराधी कहते हैं उन्हें इन इलाकों में लोग डकैत के बजाए बागी कहना ज्यादा पसन्द करते हैं,वें कहते हैं कि अपराधी और बागी में फर्क होता है,चम्बल में हर डाकू, हर दस्यु सुंदरी की अपनी अपनी कहानी है, वहाँ इन सब पर ज़ुल्म हुआ इसलिए बदले की आग में झुलसकर वें डाकू बन गए, डाकू बनने की सबकी अपनी अपनी अलग अलग कहानी है।
चम्बल घाटी के डाकुओं के भी अपने उसूल और आदर्श हैं,वें अमीरों को लूटकर गरीबों की मदद करते हैं, ज़ुल्म-ओ-सितम के खिलाफ विद्रोह करने वाले दस्यु भले ही पुलिस की फाइलों में डाकू के नाम से जाने जाते हों, लेकिन उनके नेक कामों से लोग उन्हें सम्मान से बागी कहकर पुकारते हैं, बागी यानी ज़ुल्म के खिलाफ़ बगावत करने वाला,चंबल के डाकू महिलाओं की बहुत इज़्ज़त करते हैं, डाकू डकैती के वक्त महिलाओं को हाथ नहीं लगाते, यहाँ तक कि महिलाओं का मंगलसूत्र डाकू कभी नहीं लूटते, अगर डकैती वाले घर में बहन-बेटी आ कर रुकी है तो उनकी इज्जत पर हाथ डालने की बात तो दूर डाकू उनके गहनों तक को हाथ नहीं लगाते,लेकिन पुलिस की फाइलों में इन दस्यु सरगनाओं और महिला डकैतों के अपराधों के किस्से भी मौजूद हैं,आज चंबल घाटी में दस्यु सुन्दरियों की कलाइयों की चूड़ियांँ खनकने के वजाय उनकी हाथों की बंदूक की गोलियों की तड़तड़ाहट ही सुनाई पड़ती है,उन्हीं दस्यु सुन्दरियों में से एक ही है श्यामा देवी,जो जात से कुम्हारन है,उसके दस्यु सुन्दरी बनने के पीछे भी एक कहानी है,....
सूरज डूबने को है श्यामा चम्बल के एक रेत के टीले पर बैठी बीड़ी फूँक रही है,उसकी वेषभूषा पुरूषों की भाँति है,खुली जटाएं,माथे पर लाल पट्टी और कमर में गोलियों वाला पट्टा,कमर में वह सदैव एक छुरा भी खोंसकर रखती है ताकि कभी बंदूक साथ छोड़ दें छुरा घोंपकर दुश्मन का काम तमाम कर सके,अब दोनाली बंदूक ही उसके हाथों का आभूषण है,उसके दल में करीब करीब बीस डाकू हैं और श्यामा उन सभी की सरदार है,वें सभी डाकू भी हालातों के सताए हुए हैं,कुछ तो अभी भी अपने परिवारों से जुड़े हैं और कुछ ने घर छोड़ दिया है,वें सब भी श्यामा की तरह बीड़ी फूँक रहे हैं और उनमें से एक श्यामा से बोला.....
सो श्यामा आज किते डकैती डारन जाने?
जे सब बातें तो काल रात में हो गईं हतीं,आज रात सुजान सिंह के घरे नौटंकी है ,उतई डाका डारन चलने हम औरन को,श्यामा बोली......
सो फिर हम सब जने तैयारी कर लें,उनमें से दूसरा बोला।।
और का!हमारी बाट जोह रहे ते का,सब हथियार और असलहे भर के रख लों,उते जरूरत पड़ है,श्यामा बोली।।
ठीक है और फिर सभी डाकू अपनी अपनी तैयारी में जुटकर रात होने का इन्तजार करने लगे.....
चम्बल के पास के एक गाँव में नौटंकी होने वाली है जहाँ एक शामियाने में नौटंकी की मशहूर नचनिया कस्तूरी अपने आपको सँवार रही है,कस्तूरी की खूबसूरती के चर्चे तो दूर दूर तक मशहूर हैं,कस्तूरी के बदन की बनावट ही कुछ ऐसी है कि अप्सरा भी देख ले तो शरमा जाएं,काले घने घुघराले बाल,गोल चेहरा , और चेहरे पर पैनी नाक ,अनार जैसे लाल होंठ ,होंठ पर काला तिल,मोतियों से दाँत और सुराहीदार गरदन उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाती है,ऊपर से उसके शरीर के मनमोहक उभार उसकी जवानी की गवाही देते हैं,वो जब अपनी पतली कमर लचकाती है तो अच्छे अच्छों की निगाहें उस पर से हटती नहीं,सब आहें भरकर रह जाते हैं.....
कई गाँवों के जवान छोरों की दिल की धड़कन है कस्तूरी,कस्तूरी की जवानी अंगूर की तरह लसीली है जिसका सभी स्वाद चखना चाहते हैं,गाँव के कितने ही लोंग कस्तूरी से अपने मन की आग को बुझाने के लिए कह चुके हैं लेकिन कस्तूरी बहुत हठीली है,वो कहती है कि नाचना मेरा धन्धा नहीं है ये तो मेरी रोजी रोटी है,कस्तूरी मर जाएगी लेकिन अपना जिस्म कभी नहीं बेचेगी,उसकी इस बात पर गाँव के मरद कहते हैं कि देखते हैं कब तक तू सती सावित्री बनी रहती है,कोई तो होगा जो तेरा घमंड चूर करेगा,
कस्तूरी सँज ही रही थी कि तभी नौटंकी कम्पनी का मालिक रामखिलावन आ पहुँचा और कस्तूरी से बोला.....
क्यों री!तूने रामधनी से क्या कहा....
यही कि अब मेरे पैसे बढ़ जाने चाहिए,कस्तूरी बोली।।
क्यों बढ़ाऊ तेरे पैसे,रामखिलावन ने पूछा।।
क्योंकि मैं ही सबसे ज्यादा मेहनत करती हूँ,कस्तूरी बोली।।
वो कैसें?सँज सँवर कर थोड़ी सी उछलकूद करना काम नहीं कहलाता,रामखिलावन बोला।।
तो तू ही एक दिन उछल कूद करके देख लें,एक दिन क्यों आज ही कर लें,ले मैं ये बैठ गई ,अब ना ऊठूँगी,कस्तूरी बोली।।
कस्तूरी की ऐसी हरकत पर रामखेलावन डर गया और बोला....
ऐसा मत कर मेरी मुनिया,तू जितना कहेगी मैं तेरे उतने पैसे बढ़ा दूँगा,
तब कस्तूरी उदास होकर बोली....
तुझे पता नहीं है रामखिलावन एक नचनिया होना कितना मुश्किल काम है,नचनिया को अपने दिल में कोई नहीं रखना चाहता लेकिन अपने बिस्तर पर हर कोई चाहता है,तू औरत नहीं है ना इसलिए मेरे मन के भाव नहीं समझ सकता,जब मेरे नाचते हुए बदन पर मर्दों की निगाहें पड़ती हैं ना!तो ऐसा लगता है कि कहीं डूब मरूंँ,क्या मैं इसलिए पैदा हुई थी कि मुझे देखकर लोंग सीटी मारें,आहें भरें,क्या मुझे लाज नहीं आती,जो मर्द मेरी नौटंकी देखते हैं तो वें मुझे छू नहीं पाते लेकिन उनकी गन्दी निगाहें मेरे जिस्म को भीतर तक वेध जातीं हैं,ऊपर से घर जाओ तो भाई बहनों का रोना सुनों,किसी को कुछ चाहिए तो किसी को कुछ चाहिए,मेरा दर्द तो कोई पूछता ही नहीं कि मेरे भीतर भी तकलीफ़ है,मन तो मेरा भी दुखता है कभी कभी लेकिन मेरे दुख को समझने वाला कोई नहीं है,
तू दुखी ना हुआ कर कस्तूरी अभी तेरा ये बड़ा भाई जिन्दा है ना,मैं गुस्सा होता हूँ तो क्या हुआ लेकिन कभी तुझे दिल से नहीं चिल्लाता,तू ये काम करती है तो मुझे भी अच्छा नहीं लगता लेकिन क्या करूँ तेरी तरह मुझे भी तो अपने बीवी बच्चों का पेट पालना है,रामखिलावन बोला....
हाँ!एक ही तो है जिसने मुझे सहारा दिया,ये काम दिया वरना सब तो मेरा जिस्म नोचने को फिरते थे,कस्तूरी बोली।।
मैं समझ सकता हूँ तेरी हालत ,तभी तो मैनें तुझे फौरन काम पर रख लिया,रामखिलावन बोला।।
भगवान!तेरा भला करें,तेरे बच्चे फले फूले,कस्तूरी बोली।।
अब जल्दी से तैयार हो जा ,नौटंकी में ज्यादा वक्त नहीं बचा है,रामखिलावन बोला।।
मैं तो तैयार हूँ,कस्तूरी बोली।।
और नथ कहाँ है तेरी ,वो क्यों ना पहनी?रामखिलावन बोला।।
मैं तो भूल ही गई,बस अभी पहने लेती हूँ,कस्तूरी बोली।।
और फिर कुछ ही देर में नौटंकी शुरू भी हो गई,नौटंकी की नचनिया कस्तूरी गाँव के जमींदार सुजान सिंह के बेटे की वर्षगांँठ में अपनी कमर लचकाकर गा रही है और सारे मर्द उसे बिना पलकें छपकाएं देखें जा रहे हैं...गाने के बोल कुछ इस तरह से हैं......
सइया लइदो करधनिया,मगइदो करधनिया,
मैं तोसे बिरजी.....
ब्याह काज में संग सहेली पहन ओढ़ के जाती,
चार जनन में देखों कैसीं हमरी हँसी उड़ातीं,
कमला,विमला ,पुनिया ,धनिया,
देखो हँसे सारी दुनिया,
मैं तोसे बिरजी....
जुआँ में धर दई बिन्दिया मोरी,
अब लो नहीं उठाई,
चूड़ी,चूड़ो,बंगरी के बिन सूनी लगे कलाई,
बिक गई नाक की नथुनिया,
मैं तोसे बिरजी.....
चंपा, चंदा के घरवाले ऐसे मिले कमाऊँ,
मोरी किस्मत ऐसी फूटी,
मिल गए खाऊँ उड़ाऊँ,
गोरे देखत के चिकनिया
मैं तोसे बिरजी...
नौटंकी अभी चल ही रही थी कि जमींदार के घर पर डाकुओं का हमला हो गया,डाकुओं के आते ही भगदड़ सी मच गई,तब उन डाकुओं में से डाकुओं की सरदार अपने घोड़े से उतरकर बोली....
जो जहाँ खड़ो है,उतई खड़ो रहे,नहीं तो एक गोली में कम तमाम हो जे है ऊको।।
अब सब अपनी अपनी जगह खड़े हो गए और उन डाकुओं में से एक सामने आकर बोला....
जीके पास जो जो कीमती सामान हो तो निकार के धर दो,साथ में नगदी भी ...
तभी उस भीड़ में से एक आदमी सामने आकर बोला....
हम अपना कुछ ना देगें,जो करते बने सो कर लो...
उस आदमी का इतना कहना था कि डाकुओं में से एक डाकू ने उस पर अपनी दोनाली बंदूक से निशाना साधकर उस पर गोली चला दी और देखते ही देखते वो वहीं ढ़ेर हो गया.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....